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प्रश्न: अपने दुःख- दर्द को कम कैसे करे ? अरुणा शर्मा, हैदराबाद
उत्तर: हम अपने ही सुख -दुःख से बाहर निकलना नहीं चाहते, हमको अपना दुःख ही बड़ा दिखाई देता है, दूसरे का दुःख-दर्द समझना ही नहीं चाहते ! जिस कारण हमारे भीतर करुणा का भाव कम होता चला जाता है ! अपने को दुःख से ऊपर उठाना हो तो भीतर करुणा भाव को बढाते जाओ ! कभी अस्पताल जाकर देखो दुनिया में कितना गम है फिर पता चलेगा की मेरा गम कितना कम है ! असलियत में जहां हमारी आसक्ति जितनी ज्यादा होती है वहीँ से हमें दुःख भी उतना ही ज्यादा आता है ! यदि शरीर से आसक्ति है तो उसमे कोई तकलीफ आने पर दुःख ज्यादा होगा ! यदि किसी व्यक्ति से आसक्ति है तब उस पर कष्ट आने पर ज्यादा दुःख होगा ! किसी वस्तु से ज्यादा लगाव है तो उसके खो जाने, टूट जाने पर उतना ही ज्यादा दुःख होगा ! ऐसे में हमारा प्रयास आसक्ति को कम करने का होना चाहिए ! आसक्ति कम होने पर दुःख भी कम होता चला जाएगा! दुःख और दर्द में थोड़ा अंतर होता है !
जब शरीर में कोई तकलीफ होती है, पीड़ा होती है उसको दर्द कहते है ! लेकिन जब उस दर्द के बारे में मन सोचने लगता है उसका चिंतन करने लगता है तब वह दर्द, दुःख बन जाता है ! या यूँ कहे दर्द शरीर में होता है दुःख मन में होता है ! कई बार दर्द थोड़ा होता है लेकिन उसका चिंतन उसको बड़ा कर देता है ! अकसर व्यक्ति दर्द के साथ भावनात्मक रूप से जुड़ कर उसी का रूप बन जाते है क्योंकि व्यक्ति भावनात्मक रूप से जितना कमजोर होता है उतना ही जल्दी दुखी होने लगता है ! हमें अपने को भीतर से मज़बूत करना होगा ! इसके लिए यदि आप प्रतिदिन कुछ समय के लिए ध्यान का अभ्यास करे तो लाभ मिलना शुरू हो जाएगा !
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